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वैदिक पद्धति से तैयार होगा महाकाल मंदिर का द्वार:ललितपुर-चंदेरी के कारीगर सीमेंट की जगह चूना
महाकाल मंदिर से 100 मीटर की दूरी पर बने महाकाल द्वार का पुरानी और वैदिक काल की पद्धति से जीर्णोद्धार किया जा रहा है। द्वार को सीमेंट की जगह चूना, गुड़, मेथी, गुग्गुल और उड़द के पानी से सहेजा जा रहा है। उज्जैन स्मार्ट सिटी कंपनी के लिए जीर्णोद्धार का काम चंदेरी और ललितपुर के कारीगरों ने संभाला है। इनका दावा है कि 1000 साल तक द्वार को कुछ भी नहीं होगा। द्वार की चमक और वैभव भी बरकरार रहेगी।
महाकाल के पुजारी महेश ने बताया कि पुराने जमानें मे सरिया और सीमेंट नहीं होते थे। उस समय इसी तरह के घोल का उपयोग किया जाता था। जिसे वास्तु अनुरूप भी माना जाता था। पुजारी ने बताया कि महाकाल मंदिर के स्ट्रेक्चर में भी कहीं भी सरिया, लोहा और सीमेंट का उपयोग नही किया गया है। अब जो काम हो रहे है, उसे भी वैदिक तर्ज पर ही किया जा रहा है, इसके कारण द्वार वर्षों तक खूबसूरत और मजबूत बना रहेगा।
सौभाग्य की बात है
जीर्णोद्धार कर रहे चंदेरी से आए मिस्त्री अनोखीलाल ने बताया पुरातत्व के काम में सीमेंट का उपयोग प्रतिबंधित रहता है। सीमेंट से हुए निर्माण की उम्र अधकितम 100 वर्ष हो सकती है, लेकिन इस घोल से हुए निर्माण की उम्र 1000 वर्ष से ज्यादा रहती है। उन्होंने बताया कि मैं 10 सालों से यही काम कर रहा हूं। मोती महल, गुजरी महल, चचोड़ा, ग्वालियर, कटनी, बिजरावगढ़ के कई किले-मंदिरों सहित राजस्थान में भी कई जगह काम किया है। अब महाकाल मंदिर के द्वार का जीर्णोद्धार का काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है।
कारीगर रामगोपाल अहिरवार और ललितपुर से आए वृंदावन अहिरवार ने बताया कि छत और दीवारों को अधिक मजबूती देने के लिए चूने का जो चमत्कारी मटेरियल तैयार होता है। उसमें गुड़, मेथी, गुग्गुल, बेल पत्र के फल और उड़द का पानी, ईंटे का चूरा, रेती, चूना आदि प्रमुख रूप से मिलाया जाता है।
प्रोजेक्ट की लागत 2.12 करोड़
जितेन्द्र सिंह चौहान, सीईओ स्मार्ट सिटी ने बताया कि 2.12 करोड़ से इस द्वार का जीर्णोद्धार इसी साल अक्टूबर 2021 तक पूरा हो जाएगा। द्वार में पुराने वैभव और कई वर्षों तक सुरक्षित रहे, इसलिए पुरानी पद्धति से ही काम कर रहे हैं। इस मटेरियल से तैयार भवन पूरी तरह से वातानुकूलित और पर्यावरण के अनुकूल है। सीमेंट से बने मकान की तुलना में इसका तापमान चार से पांच डिग्री कम रहता है।